________________
करतो जैसो भरनो
७६
I
बहुएं क्या आयी हैं तू तो सातवें आसमान में पहुंच गई है ।" माया पति की कंजूसाई से तंग आ चुकी थी, वह व्यर्थ ही क्लेश करना नहीं चाहती थी । और न अपने सामने अपनी बहुओं को भूखे मरते देखना चाहती थी । उसने धीरे से रात्रि में जहर खाया और सदा के लिए आंख मूंद लो ।
माया के मरने पर भी सागर का दिल न पसीजा | उसने सोचा यदि लड़के घर पर रहेंगे तो कभी भी खर्चा कम नहीं हो सकेगा । क्यों नहीं इन्हें विदेश भेज दूं । एक दिन सेठ ने अपने चारों पुत्रों को बुलाकर कहा" पुत्रो ! घर का खर्चा बढ़ गया है, तुम्हारो शादी में भी काफी खर्च करना पड़ा है, पर आमदनी वही पुरानी चल रही है अतः तुम विदेश जाओ और धन कमाकर लाओ । लड़कों ने कहा "पिता जी । जैसा भी आपश्री का आदेश होगा हम सहर्ष पालन करेंगे ।"
लड़कों ने अपनी पत्नियों से कहा - " पिता के आदेश से हम चारों विदेश यात्रा के लिए प्रस्थित होने वाले हैं ।" पत्नियों ने कहा - "नाथ | आपके अभाव में हम यहाँ कैसे रह सकेंगी । आपके पिताजी का स्वभाव तो बड़ा विचित्र है ।"
1
" किन्तु हम विना पिता श्री की अनुमति के तुम्हें साथ नहीं ले जा सकते । हमें आशा ही नहीं दृढ़ विश्वास है कि वे कभी भी अनुमति नहीं देंगे । तुम्हें यहीं रह कर पिता श्री की सेवा करनी है"- चारों लड़कों ने अपनो
Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org