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________________ फूल और पराग देना चाहती थी, उन्हें बढ़िया खिलाना-पिलाना चाहती थी, किन्तु सागर के सामने उसकी एक न चली। सेठ सागर के चार पुत्र थे। अरविन्द, गौतम, दिलीप, और प्रवीण । चारों का रूप सुन्दर था। युवावस्था आने पर भी सेठ सागर उनकी इसीलिए शादी करना नहीं चाहता था कि व्यर्थ ही क्यों खर्च किया जाय । माया तिल-मिला उठती, कैस लालची आदमी से उसका पल्ला पड़ा है। ____एक दिन नगर के लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने सागर को बुरी तरह से फटकार दिया । तुम्हारे पास इतना धन है तथापि लड़कों की शादो क्यों नहीं करते । उनके तीखे व्यंग्यबाणों से सागर घबरा गया। विवश होकर उसे लड़कों की शादी करनी पड़ी। आशा, उषा, वर्षा, और भारती ने प्रसन्नता पूर्वक स्वसुर गह में प्रवेश किया। माया पुत्र वधुओं को देखकर फूली न समाई। उसका मुरझाया हुआ चेहरा खिल उठा । उसके जीवन में अभिनव आशाएं चमकने लगीं। प्रत्येक कार्य में नया उल्लास नाचने लगा। जीने का क्रम ही बदल गया। प्रतिदिन नित नई मिठाइयां बनने लगीं । शाक-सब्जी, फल, दूध, शक्कर घी आदि के बिल देखकर सेठ का तो मस्तिष्क ही चकरा गया। घर आकर वह माया पर उबल पड़ा-"तू तो मेरा घर बर्वाद करने पर तुली हुई है। देखो न ! एक महोने में कितना खर्च कर दिया है। मैं यह निरर्थक खर्चा कभी बरदास्त नहीं कर सकता। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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