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करनी जैसी भरनी सेठ सागरदत्त चम्पा नगरी का प्रसिद्ध व्यापारी था। उसके पास अब्जों की सम्पत्ति थी। धन के अम्बार लगे हुए थे किन्तु वह एक नम्बर का मक्खीचूस था । चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय यह उसका सिद्धान्त था । पैसे को परमेश्वर मान कर रात-दिन उसी की अर्चना में लगा रहता था।
सेठानी माया पति की कृपणता से संत्रस्त थो। वह उसे अनेक बार कहती, पर उसके कहने का सागर सेठ पर कोई असर नहीं होता। वह मन मसोस कर रह जाती। सागर सेठ कभी भी उसकी आज्ञा पूरी नहीं करता । निराशा का विष पीते-पीते उसकी सभी आशाएं मर चुकी थीं। वह बिलकुल नीरस जीवन जी रही थी। शादी के पूर्व जब उसने सुना था कि उसका पति महान् धनवान है तो उसके मन में अनेक कल्पनाएं उबुद्ध हुई थीं। उसने मन में अनेक रंग-बिरंगी आशाएं संजोई थीं, पर कृपण सागर ने उसकी सभी आशाओं पर पानी फेर दिया था। वह अपने प्यारे पुत्रों को उच्च शिक्षण
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