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रानी का न्याय
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रानी - " अच्छा तो आप अभी जाइए । मैं जब भी बुलाऊँ तब आइयेगा । मैं आपको आपके रत्न दिलाने का प्रयास करूंगी।"
सुमित्र चला गया, रानी ने राजा से निवेदन किया" आपके राज्य में एक गरीब व्यक्ति की सुनवाई नहीं हो रही है, यह तो बड़ा अनुचित है ।"
राजा - " रानी ! सत्यघोष जैसा व्यक्ति इस संसार में मिलना हो कठिन है, वह कभी भी असत्य नहीं बोल सकता ! सुमित्र ही पागल है ।"
रानी - "महाराज ! ऐसा नहीं है, आप यदि मुझे आदेश दें तो मैं न्याय कर सकती हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि उसने सुमित्र के रत्न चुराये हैं ।"
राजा - " अच्छा रानी ! तुम न्याय करना चाहो तो सहर्ष करो, मैं भी देखू सत्य क्या है ?"
रानी ने अपनी गुप्तचर दासियों को भेजकर सत्यघोष को कहलाया कि आपको महारानी बुलाती है । सत्यघोष महारानी के सन्देश को प्राप्त कर अत्यधिक प्रसन्न हुआ । वह सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित होकर राजमहलों में पहुँचा | अभिवादन के पश्चात् उसने पूछा - "क्या आदेश है आपका ?"
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महारानी - सत्यघोष जी ! मैंने आपकी बहुत ही प्रशंसा सुनी, दर्शन की इच्छा थी । अब आप पधारे हैं तो कम से कम दिलबहलाने के लिए आपके साथ चौपड - पासा खेलना चाहती हूँ ।"
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