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फल और पराग
सत्यघोष-"महारानी जी! आप यह क्या फरमा रही हैं, यदि राजा सुनेगा तो मुझे जोते-जी फांसी पर चढ़ा देगा।"
राजा-"आप तनिक मात्र भी चिन्ता न करें, मैंने राजा से पहले ही अनुमतो प्राप्त करली है। रानी के आदेश को मानकर सत्य घोष चौपड़ पासा खेलने के लिए बैठ गया। रानी ने कहा- “जो पराजित होगा उसे जीतने वाला जो भी मांगेगा वह देना पड़ेगा।"
खेल प्रारम्भ हुआ, सत्यघोष पराजित हो गया, रानो ने कहा-"जरा अपनी मुद्रिका निकालकर मुझे दीजिए।" उसने मुद्रिका निकालकर रानी के हाथों में दी। रानी ने कहा- 'मैं जरा पानी पीकर आती हैं आप जरा यहीं बैठिए।" रानी बाहर आयी। दासी को मुद्रिका देते हुए कहा-"तुम सत्यघोष के घर जाओ और कहो कि सत्यघोष ने मुद्रिका दी है और कहा है कि बारह वर्ष पूर्व सुमित्र के पाँच रत्न रखे थे वे दे दो।" दासी उसी समय गई। सत्यघोष की पत्नी को मुद्रिका दिखाकर कहा"सत्यघोष ने रत्न मंगाये हैं वह मुझे दो। वे इस समय आपत्ति में हैं।" सत्यघोष की पत्नी ने कहा-"मुझे पता नहीं रत्न कहाँ रखे हुए हैं।"
दूसरा खेल प्रारंभ हुआ, सत्यघोष उसमें भी पराजित हो गया। इस समय रानी ने उससे सोने की कैंची मांग ली जो सत्य घोष ने अपनी जबान काटने के लिए रखी थी।
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