________________
रानी का न्याय आचार्यप्रवर का प्रवचन चल रहा था। सत्य के मार्मिक, हृदयग्राही विश्लेषण को सुनकर एक युवक सभा में ही खड़ा हुआ। गुरुदेव ! आज से कभी भी मैं असत्य का भाषण नहीं करूंगा। यदि भूल से कभी असत्य वचन निकल गया तो उसी समय कैंची से मैं अपनी जबान काट दूंगा।
आचार्य प्रवर ने कहा- "युवक ! भावुकता के प्रवाह मे बहकर प्रतिज्ञा लेना सरल है, पर निभाना तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है।"
युवक ने दृढ़ता के साथ वचन दिया "मैं प्रारण की भी परवाह न कर प्रण को निभाऊंगा।" युवक की सत्यनिष्ठा को देखकर सभो उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे। सत्य को उद्घोषणा करने के कारण लोगों ने उसका नाम 'सत्यघोष' रख दिया।
सेठ सुमित्र उस नगर से पच्चीस मील दूर एक गांव में रहता था। वह विदेश में व्यापार के लिए जा रहा था। उसके पास पाँच अनमोल रत्न थे। उसने सोचा यह रत्नों की डिब्बी लेकर मैं कहाँ जाऊंगा। ये यहीं
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org