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फूल और पराग
पर किसी विश्वस्त व्यक्ति के वहाँ पर रखदूं । नगर निवासियों से पता लगा कि 'सत्यघोष' के समान सत्यवादी अन्य नहीं है । वह सत्यघोष के पास गया, रत्नों की डिबिया उसके चरणों में रखकर कहा - 'यह मेरी अमानत आप अपने पास रखिए। मैं विदेश जा रहा हूँ, आने पर ले लूंगा ।” सत्यघोष पहले इन्कार होते रहे, फिर उसने कहा - " तुम्हारी इच्छा है तो सामने को पेटी में तुम्हारी डिबिया रख दो, जब भी तुम्हें आवश्यकता हो तब ले जाना । पर यह ध्यान रखना कि यह बात अन्य व्यक्तियों से मत कहना, कहोगे तो यहाँ भीड़ लग जायेगी।" सेठ सुमित्र रत्नों की डिबिया रखकर व्यापारार्थ चल दिया। लाखों की सम्पत्ति कमा कर बारह वर्ष के पश्चात् वह अपने घर की ओर आ रहा था कि मार्ग में उसे तस्करों ने लूट लिया । वह भिखारी के वेश में रत्न लेने के लिए सत्यघोष के पास पहुंचा, और अपनी डिबिया मांगी।
बहुमूल्य रत्नों को देखकर सत्यघोष का मन लोभ में फस गया था। लोभी को सत्य कहां ? झिड़कते हुए कहा - " मेरे पास तुम्हारे रत्न कहाँ हैं ? क्या भिखारी के पास रत्न होते हैं ? तुमने मेरे पास कभी भी रत्न नहीं रखे, तुम मिथ्या ही मेरे पर कलंक लगा रहे हो ।"
सत्यघोष की यह बात सुनते ही सेठ सुमित्र के आश्चर्य का पार न रहा । क्या सत्यवादी का टाइटिल लगाने वाला स्पष्ट रूप से इन्कार हो सकता है। जो सोने की
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