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________________ फूल और पराग और शक्कर ही दिखलाई दी, उसने तमक कर पूछा"घेवर कहां है ?" हलवाई की पत्नी ने कहा--"एक मैंने खाया, एक लड़के ने, एक लड़के की बहू ने व एक जमाई ने खा लिया है।" हलवाई मन मसोस कर रह गया। उधर ठाकुर ने सभी घेवरों को तुलवाये, घेवरों की गिनती करवाई, जो कच्चा माल दिया गया था उसके तोल को भी मिलाया। ठाकुर ने कहा-"जितना माल दिया गया था उतने माल से चार सौ घेवर बनने चाहिए थे, पर इनमें चार घेवर कम हैं।" हलवाई को उसी समय बुलाया, बताओ चार घेवर कम कैसे हुए ? हलवाई पहले तो आनाकानी करता रहा किन्तु एक दो हन्टर लगते ही वह सत्य बोल गया कि-'मैंने चार घेवर चुराये, पर एक भी मैंने नहीं खाया।" ठाकुर ने कहा"इसे यही सजा है कि एक-एक घेवर के ग्यारह-ग्यारह हन्टर लगा दिए जायें । चवालीस हन्टर खाते-खाते हलवाई की चमड़ी उधड़ गई, वह बेहोश होकर गिर पड़ा, भविष्य में ऐसी भूल न हो इसके लिए मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा की। ___कथा के मर्म का समुद्घाटन करते हुए कहा है"कितने ही जीव हलवाई के साथी हैं, वे पाप कृत्य करते हैं सम्पत्ति आदि एकत्रित करते हैं पर वे स्वयं उसका उपयोग नहीं कर पाते, उपयोग उसका दूसरे व्यक्ति करते हैं, पर फल उन्हें भोगना पड़ता है। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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