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घेवर
रायपुर के ठाकुर मानसिंह बड़े बुद्धिमान व विलक्षण प्रतिभा के धनी थे । हजारों रुपए वे अपनी प्रजा की सुख सुविधा के लिए खर्च करते । स्थान स्थान पर उन्होंने औषधालय, राठशालएँ, व धर्मशालाए निर्माण की। उनसे माँगकर कोई भी हजारों रुपए ले सकता था, पर उनकी आंख में धूल झोंककर एक पैसा भी लेना कठिन ही नहीं, कठिनतर था।
एक दिन ठाकुर के यहां मेहमान आये । ठाकूर ने हलवाई को बुलाया, और दूध मावा, बादाम, पिस्ते, इलायची, केशर, गुलाब के फूल, बेसन, शक्कर आदि जितनी भी सामग्री घेवर बनाने के लिए आवश्यक थी देते हुए कहा- "इसके बढ़िया घेवर बनादो। तुम्हें पारिश्रमिक के रूप में पच्चीस रुपए दिये जायेंगे।"
हलवाई ने सोचा "सैकड़ों की संख्या में घेवर निर्माण किये जा रहे हैं, यदि इन घेवरों में से चार घेवर मैं चरा भी लूंगा तो ठाकुर को क्या पता लगेगा । उसने अपने लड़के से कह दिया कि तू मध्याह्न में मेरे भोजन के
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