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खून का असर
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सेठाणी ने मुस्कराते हुए कहा - आप तो ऐसी बात करते हैं कि मुर्दों को भी हँसी आ जाये। क्या कभी दादी का असर पोतो में आ सकता है ? दादी की सजा पोती को देना कहाँ का न्याय है ? मेरी हार्दिक इच्छा यही है कि उसकी विनयकुमार के साथ शादी करूँ । उसे मैं अपनी बहूरानी बनाना चाहती हूँ ।"
गृहलक्ष्मी के अत्याग्रह के कारण सेठ को उसकी बात माननी पड़ी। अत्यन्त उल्लास के क्षणों में पाणिग्रहण हुआ । विनयकुमार अप्सरा जैसी पत्नी को पाकर फूला नहीं समा रहा था ।
एक दिन सेठ चिन्तामग्न थे । वे तकिये का सहारा लिये हुए गंभीर मुद्रा में बैठे थे । सेठाणी सेठ के चेहरे 1 । को देखकर ही विचार मग्न हो गई । सेठ की ऐसी गमगीन सूरत उसने पूर्व कभी भी नहीं देखी थी । उसने धीरे से पूछा - " नाथ ! ऐसी क्या बात हो गई जिसके कारण आपका चेहरा इतना मुरझा गया है । आपकी मुख- मुद्रा देखकर ही मैं उद्विग्न हो गई हूँ ।
सेठ ने गंभीरता से कहा - " कुछ भी कहने जैसी बात नहीं है। दुकान में इतना अधिक घाटा आ गया है कि परिवार की इज्जत रखना भी कठिन है ।"
सेठाणी ने अपने सभी जेवर देते हुए कहा - "चिन्ता किस बात की है | आप इन सभी जेवरों को ले जावें और प्रसन्नता से उपयोग करें ।
सेठ ने कहा - " इतने से जेवर से कार्य नहीं चलेगा ।
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