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फल और पराग
वीरबल-जहाँपनाह ! आपका संवत् चल सकता है। संवत् चलाने के लिए जीवन में अनेक विशेषताएँ अपेक्षित हैं। महाराजा विक्रमादित्य के जीवन में अनेक विशेषताएं थीं। उनका जीवन सदगुणों का आगम था । उनके जीवन का एक प्रसंग ही उनके तेजस्वी व्यक्तित्व को बतलाने के लिए पर्याप्त है।
एक समय विक्रमादित्य एकाकी घोड़े पर बैठकर विदेश यात्रा के लिए जा रहे थे। भयानक जंगल था, मीलों तक मानव के दर्शन दुर्लभ थे। उस समय उन्हें एक व्यक्ति के रोने की आवाज नाई दी। वे सोधे ही उस व्यक्ति के पास पहुंचे । अरे ! वृद्ध इस सुनसान जंगल में क्यों रो रहे हो ! बताओ तुम्हें क्या कष्ट है ? ।
वृद्ध ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा- "मेरे दुःख की करुण-कहानी सुनकर क्या करोगे, क्यों अपना समय बरबाद करते हो।”
विक्रमादित्य-"मैंने यह प्रण ले रखा है कि दुःखिया के दुःख को दूर किये बिना अन्न-जल ग्रहण न करूंगा, अतः यह बताओ तुम्हें क्या दुःख है ?"
वृद्ध ने कहा-हम लोग आर्थिक संकट से संत्रस्त हैं। आर्थिक अभाव के कारण परिवार के प्रत्येक सदस्य में मनमुटाव है, जिससे हमारा सांसारिक जीवन कलुषित हो गया है।"
विक्रमादित्य---- "वृद्ध महानुभाव ! मेरे पास इस समय चार अपूर्व वस्तुएं हैं। ये वस्तुएं एक-एक से बढ़कर व चमत्कार पूर्ण हैं। देखो यह हण्डिया है इसमें यह
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