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फूल और पराग पर यह भी मैंने नहीं किया। मेरे कारण तुम्हें ही नहीं, अन्य अनेक व्यक्तियों को ऐसे कार्य करने पड़े होंगे, मुझे अब इसका प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिए।"
सेठ प्रायश्चित्त के अधिकारी वस्तुतः आप नहीं मैं हूँ, क्योंकि मैंने चोरी की है।" ___ दीवान-अच्छा, हमारे लिए श्रेयस्कर यही है कि हम दोनों सद्गुरुदेव के पास जायें। सद्गुरुदेव हमारे को सही मार्ग दर्शन करेंगे। दोनों ही सदगुरुदेव के पास पहुंचे शुद्ध हृदय से पापों की आलोचना को चोर को गुरुदेव ने कहा-"तुमने स्पष्ट रूप से पाप को स्वीकार कर लिया इसलिए तुम पाप से मुक्त हा गये। दीवान जी को भी परिग्रह परिणाम व्रत स्वीकार करना चाहिए। अपने स्वधर्मी भाइयों के लिए, दीन और अनाथों के लिए मुक्त हाथ से सहयोग देना चाहिए। स्वहित के साथ परहित को भी नहीं भूलना चाहिए। दीवान ने गुरुदेव की बात स्वीकार की। उसने लाखों की सम्पत्ति जनजीवन के कल्याण के लिए समर्पित कर दी। हजारों व्यक्तियों के जीवन का नव निर्माण कर दिया। अधिकार का ऐसा सदुपयोग किया कि राज्य में सुख की वंशी बजने लगो।
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