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५.२
फूल और पराग
रहूँगा । उसके मन में हार जाने का दुःख नहीं था । उसने हार गुम जाने की बात भी किसी से नहीं की । सुनकर घर गया । उसी अधेड़ उम्र का व्यक्ति
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वह गुरुदेव श्री से मंगल पाठ समय अनुचर ने कहा - " एक बाहर खड़ा है । वह आप से मिलना चाहता है ।" दीवान ने उसे अन्दर बुलाया। अन्दर आते ही वह दीवान के चरणों में गिर पड़ा । " दीवान साहब ! मैं इस समय आर्थिक संकट से संत्रस्त हूं । अर्थाभाव के कारण हजारोंहजार आपत्तियां मेरे जीवनाकाश में मंडरा रही हैं । एक ओर मेरी पत्नी बीमार है, दूसरी ओर पढ़ाने की व्यवस्था न होने से लड़का अवारे की तरह इधर उधर घूम रहा है । मैं व्यापार कर अपना व परिवार का जीवन निर्वाह करना चाहता हूँ, पर बिना पूँजी के वह कहाँ संभव है । कृपया आप मुझे इस समय दस हजार रुपए देवें, और गिरवी के रूप में यह हार रख लें ।" यों कहकर उसने अपनी जेब से हार निकाला और दीवान के सामने रख दिया ।
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हार को देखते ही दीवान समझ गया, यह हार उसी का है और इसी ने इसे चुराया है। पर अब हार मेरा नहीं, इसका है । चट से दीवान ने हार के बदले में दस हजार रुपए गिनकर दे दिये ।
एक दिन दीवान किसी अन्य कार्य में व्यस्त था । उसी समय वह व्यक्ति ग्यारह हजार रुपए लेकर आया । "दीवान साहब ! आप के मधुर सहयोग से मेरे जीवन की
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