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________________ पारसमणि भो भीख मांग कर बड़ो कठिनता से अपना पेट भरता हूँ। ___ योगी दरवाजे पर खड़ा-खड़ा ही झौंपड़ी रही हई सारी वस्तुएं देख रहा था। उसकी पैनो दृष्टि में कुछ भी छिपा न था। उसने स्नेह स्निग्ध वाणी में भिखारो को कहा-"बड़ा आश्चर्य है कि तू अपने आपको गरीब मान रहा है। मेरी दृष्टि में तेरे समान कोई भी भाग्यशाली नहीं है। तेरे पास में तो ऐसा अपूर्व खजाना है कि तु हजारों लाखों व्यक्तियों की दरिद्रता को जड़-मूल से मिटा सकता है। योगी की रहस्यमयी वाणी को भिखमंगा समझ नहीं पा रहा था। योगी की बात उसके लिए एक अबूझ पहेली की तरह थी, वह तो आश्चर्य चकित देख रहा था कि योगी क्या कहना चाहता है। उसने अत्यन्त नम्र शब्दों में निवेदन किया-"भगवन् ! आप तो दीनबन्धु हैं, दीनानाथ हैं, आप उनका उपहास और तिरस्कार कभी नहीं कर सकते । दुःखियों के आप साथी हैं, फिर मुझे धनवान् कहकर मजाक नहीं उड़ा रहे हैं, मेरे पर व्यंग्य नहीं कस रहे हैं ? मेरे पास न खाने को अन्न है न तन ढंकने को पूरे वस्त्र है, और न रहने के लिए अच्छी झोंपड़ो है, फिर बताइये-भगवन् ! मैं धनवान् कैसे ? ऋषिप्रवर ! क्या इस प्रकार आपको कहना उचित है ?" योगी तो अपनो धुन में ही मस्त था। उसे लगा यह Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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