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अभिमान गल गया
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वृद्धा ने लाक्षणिक मुद्रा में कहा-'अच्छा गुरुदेव ! आप श्री ने अपने ज्ञान के आधार पर चार झंडियां रखी हैं तो गणधर गौतम और जम्बू कितनी झंडियाँ रखते होंगे, क्योंकि वे तो सर्वज्ञ थे ? उनके वहाँ पर हजारों झण्डियाँ लहराती होंगी न।"
वृद्धा के कहने का ढग इतना निराला व सीधा था कि उपाध्याय जी तिलमिला उठे। उनके नेत्र खुल गये। उन्हें अनुभव हुआ कि वे वस्तुतः गलत रास्ते पर हैं। उनका मिथ्या अभिमान नष्ट हो गया। वृद्धा के सामने उन्होंने वे सारी झण्डियां उखाड़ कर फेंक दीं। उनके हृतंत्री के तार झनझना उठे-"माता तुम महान् हो, तुमने मुझे सही मार्ग दिखा दिया।"
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