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मयणल्ल देवी
मयणल्लदेवी चन्द्रपुर के राजा कादम्बराज जयकेशी की पुत्री थी। उसका रूप इतना सुन्दर नहीं था जितना उसका हृदय था । जब से उसने गुजरात नरेश भीमदेव के पुत्र कर्ण की शौर्यपूर्ण वीर गाथाएं सुनी, वह उसके प्रति आकर्षित हो गई। उसको वह दिल से चाहने लगी ।
भीमदेव के पश्चात् कर्ण गुजरात के गौरवशाली सिंहासन पर आसीन हुआ । कर्ण जैसे राजा को प्राप्त कर प्रजा प्रसन्नता से फूल रही थी । कर्ण, कर्ण की तरह बहादुर थे । उनका सौन्दर्य दर्शकों के दिल को लुभा लेता था । श्रवण कुमार की तरह कर्ण मातृ भक्त भी था, वह अपनी माता उदयमती का हृदय से आदर करता था, उसकी आज्ञा उसके लिए अनुल्लंघनीय थी ।
मल्लदेवी किशोरावस्था को पारकर युवावस्था में प्रवेश कर चुकी थी। राजा जयकेशी ने उसके विवाह की चर्चा प्रारंभ की। मयणल्लदेवी ने कहा - " पिताजी । मैं चालुक्य नरेश कर्ण के अतिरिक्त किसी दूसरे का वरण नहीं करूंगी। विवाह की भले ही बाह्य रीति रश्मियाँ
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