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________________ ३४ फूल और पराग राजा ने कहा-"साफ-साफ बता दो, तुम्हारे सभी अपराध मैं क्षमा करता हूं, और प्रसन्न होकर दस लाख रुपये भी देता हूँ।" उसने कहा- ''महाराज ! बात यह है कि कुछ दिन पूर्व हमारे राजा के पास एक हस्तरेखा निष्णात विद्वान् आया । हम भी राजा के पास ही बैठे वार्तालाप कर रहे थे। उसने पहले महाराजा का हाथ देखा, फिर हम दोनों का। उसने महाराजा को बताया कि हम दोनों के ग्रह बहुत ही अशुभ हैं । ये जिस राज्य में मरेंगे, वहां का राजा मर जायेगा, और उसका सारा राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा, एतदर्थ महाराजा ने हमें आपके पास भेजा है। हमारी मृत्यु उनके राज्य में न हो जाए, यह उन्हें भय था।" हिम्मतसिंह ने जब यह रहस्यमयी वार्ता सुनी तो स्तब्ध रह गये। वह विचारने लगे मेरे साथ विश्वासघात किया है । वह स्वयं को तथा अपने राज्य को बचाने के लिए मुझे व मेरे राज्य को समाप्त करना चाहता था । समय आने पर मैं इसका बदला लूंगा। इन दोनों को शीघ्र ही राज्य की सीमा के बाहर निकाल दू। उसने शीघ्र ही फांसी की सजा रद्द करदी और दोनों को अपने रथ में बिठाकर अनुचरों को कहा कि इन्हें राज्य की सीमा के पार पहुँचा दो, मार्ग में कहीं ये अस्वस्थ न हो जायें, यह ध्यान रखना।" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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