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________________ ३३ बड़ी कौन ? कि जल्दी फांसी मिले, पर आप इधर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। हमें समझ में नहीं आ रहा है कि आप इतना विलम्ब क्यों कर रहे हैं ? हमें शीघ्र फांसी दीजिए और अपने मित्र के आदेश का पालन कीजिए"। दूसरा पण्डित भी पोछे-पीछे मित्र की बात दोहरा रहा था। राजा को समझ में नहीं आया कि ये पण्डित मरने के लिए इतने आतुर क्यों हैं ? सभी लोग जोने के लिए प्रयास करते हैं पर ये मृत्यु को वरण करना चाहते हैं। राजा को माजरा समझ में नहीं आया। अन्त में उसने पूछा--- "आप लोग फांसी के लिए इतने आतुर क्यों हो ___दोनों पण्डितों ने कहा-"आपको इससे क्या मतलब ? इसके एक नहीं, अनेक कारण हो सकते हैं, वे कारण हम आपको नहीं बताएगें आप तो अपने मित्र राजा के आदेश का पालन कीजिए।" राजा ने वह कारण जानना चाहा, किन्तु वे बताने से इन्कार होते रहे। राजा का संशय बढ़ता रहा। उसने सोचा इसमें कोई बड़ा रहस्य रहा हुआ है। उसने सरस्वती के उपासक पण्डित को एकान्त में ले जाकर पूछा- "बताओ ! क्या रहस्य है ? तुम्हारे को मरने में इतनी रुचि क्यों है ?" उसने कहा-"कुछ नहीं, आप तो अपना कार्य कीजिए, मरने के पश्चात् आपको स्वत: मालूम हो जायेगा।" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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