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फूल और पराग
राजा ने स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा - "यह असम्भव है, मैं मित्र के साथ कभी भी विश्वासघात नहीं कर सकता । मित्र का कार्य मुझे करना ही होगा ।" प्रधान मन्त्री ने राजा का अन्तिम निर्णय लक्ष्मी के उपासक पण्डित को सुना दिया पण्डित को यह स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि समय पर धन उसको धोखा दे देगा | वह अब निरुपाय हो गया । उसके सामने प्रव बचने का कोई उपाय नहीं था । वह अब सरस्वती के उपासक पण्डित के चरणों में गिर पड़ा, "किसी भी उपाय से मुझे बचा दीजिए, मैं तुम्हारे से प्रारणों की भिक्षा मांगता हूं | ये ग्यारह लाख रुपए तुम्हें अर्पित करता हूं।" उसने आश्वासन देते हुए कहा - " मैं उपाय करूंगा, घबराओ नहीं, अब तो सिर्फ एक ही घण्टे का समय रहा है किसी दूसरे से सम्पर्क भी नहीं साधा जा सकता है, पर मैं जैसा कहूं वैसा तुम करना, दृढ़ विश्वास है कि फांसी से मुक्त हो जाओगे ।
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ज्यों ज्यों फांसी का समय सन्निकट आ रहा था त्योंत्यों लक्ष्मी का उपासक पण्डित घबरा रहा था, पर सरस्वती के उपासक पण्डित के चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी । दोनों पण्डितों को फांसी के तख्ते के पास लाया गया। सरस्वती के उपासक पण्डित ने कहा - "राजन् ! कल हम आपकी सेवा में आये, पर अभी तक आपने हमें फांसी नहीं दी । आप कितने ढीले हैं, आपके कर्मचारी भी लापरवाह हैं । हम तो कभी से इन्तजार कर रहे हैं
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