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फूल और पराग दरबार में पहुँचे। अभिवादन कर उन्होंने राजा अजित सिंह का बन्द पत्र राजा के हाथ में दिया । पत्र पढ़ते ही
राजा के आश्चर्य का पार न रहा पत्र में सिर्फ इतना ही लिखा था कि'इन दोनों पण्डितों को शीघ्र ही फाँसी दे देना।'
तुम्हारा
__ अजितसिंह राजा विचार में पड़ गया कि इन्हें फांसी की सजा क्यों दी गई है ? पत्र में कुछ भी स्पष्टीकरण नहीं था। विना कारण मित्र पर सन्देह भी तो नहीं किया जा सकता था। मित्र के पत्र के सन्देश को आवश्यक समझ कर राजा ने उसी समय घोषणा की कि-'कल मध्याह्न के बारह बजे इन दोनों पण्डितों को फांसी दी जायेगी। इस समय इन दोनों पण्डितों को नजर कैद कर दिया जाय।"
राजा की उपरोक्त घोषणा सुनते ही लक्ष्मी के उपासक पण्डित के पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी। उसे यह स्मरण ही नहीं आ रहा था कि किस कारण राजा ने उसे फांसी की सजा दी है । मृत्यु के भय से पण्डित का कलेजा कांपने लगा। सिर चकराने लगा। वह उस मृत्यु दण्ड से बचना चाहता था।
सरस्वती के उपासक पण्डित ने अपने साथी से कहा--"आप तो धन के इतने गुण गाते थे। राजा ने आपको ग्यारह लाख रुपए भी अर्पित किये हैं। वे रुपए
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