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________________ फल और पराग 'इसके पूर्व ऐसा बीभत्स दृश्य कभी नहीं देखा था। वह प्रतिदिन तो शराब अपने घर पर ही पीता था। उसने अपने साथियों के समाने प्रतिज्ञा ग्रहण की कि "आज से मैं कभी भी शराब नहीं पीऊँगा।" वहां से उलटे पैरों लौट आया। सोहन के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी। उसके अनेक कोठियाँ थीं । अनेक दलाल उसके चारों ओर घूमा करते थे। वह मनपसन्द किसी भी अलबेली को अपनी कोठियों पर बुला लिया करता था । पर आज प्रतिज्ञा होने से वह बुला नहीं सकता था। वह स्वयं नगर की प्रसिद्ध वैश्या के मकान की ओर चल पड़ा। मकान में प्रवेश करते ही उसने देखा एक कुष्ठरोगी युवक वैश्या के मकान से बाहर निकल रहा है । उस कुष्ठ रोगी के शरीर से मवाद बह रहा है । उसे देखकर सोहन के मन में ग्लानि हो गई ! “अरे जिस नारी का आलिङ्गन यह करे, उसका मैं भो करूं छिः छिः ! जो नारी पैसे को ही सर्वस्व मानती हो, जिसे हेय और उपादेय का भी भाव नहीं है, उस नारी से प्रेम कैसे हो सकता है ? धिक्कार है मुझे ! जो क्षणिक वासनापूर्ति के लिए इधर-उधर भटकता रहा।' वह सीधा हो वहाँ से लौटकर घर पर आया। पिता के चित्र के सामने खड़े रहकर पत्नी की साक्षी में उसने प्रतिज्ञा ग्रहण की-"आज के संसार में जितनी भी पराई स्त्रियां हैं उन्हें मैं माता और बहिन मान गा। मैं सदाचार का पालन करूंगा।" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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