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________________ पिता की सीख २५ विक गए । लाखों की सम्पत्ति नष्ट हो गई, आज मेरे पर हजारों नहीं, लाखों का कर्जा हो गया है। पिता ने अत्यन्त श्रम कर जो धन कमाया, वह मैंने जुए में सब समाप्त कर दिया । आज मैं एक भीखारी हो गया हूँ ।" मित्र की करुण कहानी सुनते ही सोहन की आँखें खल गई। दो क्षण के चिन्तन ने उसका हृदय बदल दिया । उसने अपना एक दृढ़ निर्णय किया और मित्रों को सुनाते हुए कहा - " आज से मैं कभी भी जुआ नहीं खेलूंगा ।" उसने अपने स्नेही साथी से कहा - " यदि तुम व्यापार करना चाहो तो मैं तुम्हें यथायोग्य सहयोग दूँगा।" सन्ध्या का सुहावना समय था । शीतल मन्द समीर चल रहा था । मदिरापान का समय होते ही उसे उसकी स्मृति आयी । पर आज घर में शराब नहीं पीनी थी । वह अपने दो साथियों को लेकर मदिरालय की ओर चल दिया । मदिरालय के पास ही बढ़िया वस्त्रों से सुसज्जित उसका एक मित्र गटर में पड़ा अंट-संट बक रहा था । गटर में कीड़े कुलबुला रहे थे । भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी । उसपर मक्खियां भिनभिना रही थी । कुत्ते उसके मुह को चाट रहे थे । पास ही खड़ा एक समझदार व्यक्ति कह रहा था - "इसने बहुत शराब पी है, विल्कुल भान भो नहीं रहा है देखो शराबियों की कैसी दुर्दशा होती है ।" सोहन ने अपने मित्र की यह दुर्दशा देखी, विचार आया- "अरे ! मैं भी तो इसी रोग का मरीज हूं । उसने Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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