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पिता की सीख
जीवन को सान्ध्य बेला में सेठ रामलाल चार पाई पर लेटे हए इधर-उधर करवटें बदल रहे थे। उनका स्वास्थ्य कितने ही दिनों से अस्वस्थ चल रहा था। वैद्य, हकीम और डाक्टरों की दवाई लेते-लेते ऊब गये थे। सेठ रामलाल प्रकृति से भद्र, विनीत व दयालु थे। उन्होंने लाखों रुपए जन-कल्याण के लिए समर्पित किये थे। नगर में उनके नाम के धर्म स्थान, पाठशालाएं और औषधालय थे। दीन,अनाथ,विधवा बहिनों को,तथा गरीब छात्रों को वे खुले हाथों से सहयोग देते थे। वे चाहते थे कि मेरे पश्चात् मेरा पुत्र सोहन भी इसी प्रकार धार्मिक सामाजिक, व राष्ट्रीय कार्य करता रहे। मेरे नाम को चार चांद लगाता रहे।
एक दिन सेठ का सुख-सम्वाद पूछने के लिए उसका परम विश्वासी मित्र आया। वार्तालाप के प्रसंग में उसने बताया कि तुम्हारा पुत्र सोहन इन दिनों में अनेक व्यसनों का शिकारी हो गया है । वह मद्यपान करता है, जुआ खेलता है और वेश्याओं के वहाँ भी जाता है।
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