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मृत्यु के पश्चात् कुछ देर तक महाराज पलंग में पड़े इधर से उधर करवटें बदलते रहे, कराहते रहे। ___महाराजा जसवन्तसिंह जी प्राणायाम के पूरे अभ्यासी थे। उन्होंने पहले कुछ दीर्घ श्वास लिए, फिर प्राण-वायु को कपाल में चढ़ा दिया। नाड़ी गायब हो गई, सारा अंगोपाङ्ग मुर्दे की तरह शिथिल हो गया। यह देख सभी के होश-हवास उड़ गये। स्नेहोजनों की आंखों से मोती बरसने लगे। सभी कह रहे थे "अरे क्रूर काल, यह तेने क्या कर दिया ?" __ शवयात्रा की तैयारी होने लगी। महाराजा को सुगन्धित पानी से स्नान कराया गया। शरीर पर सुगन्धित पदार्थों का लेपन किया गया। राजा के द्वारा निर्दिष्ट वह पोशाक लाई गई । राजकुमार ने ज्योंही उस अनौखी पोशाक की चमक-दमक देखी, मुग्ध हो गया। उसके मन में विचार आया "लाखों रुपए की यह कीमती पोशाक क्या अग्नि में जलाने के लिए है ?"
उसने धीरे से मंत्री को कहा-"पोशाक तो बहुत सुन्दर व कोमतो है " _ मंत्री को राजकुमार के मानसिक विचारों को समझने में देर न लगी। वह राजकुमार को प्रसन्न करना चाहता था, उसने राजकुमार के विचारों का समर्थन करते हुए कहा-'पोशाक तो बहुमूल्य है। पोशाक को बनाने में महाराजा ने बहुत ही श्रम किया था। लाखों रुपए खर्च . किए, देखिए कितनो सुन्दर नक्कासी की गई है, हीरे,
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