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फूल और पराग
यह पोशाक एक दिन अग्नि में जलाई जायेगी, क्या यह राख बन जायेगी ?"
उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र व प्रधानमंत्रो को आदेश दिया कि मुझे मरने के पश्चात् यह पोशाक पहनाई जाय । सबने कहा-"जैसा आपश्री का आदेश ।" __ महाराजा प्रेम पूर्वक राज्य का संचालन करते रहे। उनके नीतिमय स्नेह-सौजन्यता पूर्ण सद्व्यवहार से प्रजा अत्यधिक प्रसन्न थी। प्रजा प्रारणों से भी अधिक राजा को चाहती थी। जहां राजा का पसीना बहे, वहाँ बह अपना खून वहाने के लिए तैयार थी।
एकदिन राजा के मन में विचार आया कि "मैंने मरने के पश्चात् पहनने की जो बहमूल्य पोशाक बनाई है, वह इतनी सुन्दर,दर्शनीय, और रमणीय है कि शायद मरने के बाद मुझे न भी पहनावें, क्योंकि मेरे मन में भी कभी कभी उसे देखकर मोह हो जाता है तो फिर दूसरों का कहना ही क्या ? अच्छा तो यही है कि मैं जरा परीक्षा कर देख लूं।"
प्रातःकाल होने पर राजा ने रानियों से कहा"आज मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है । घबराहट हो रही है। सांस फल रहा है। और साथ ही शरीर में अपार वेदना भी हो रही है।" बीमारी की बात सुनते ही सारे राज्य प्रासाद में तहलका मच गया। इधर से उधर हकीम और वैद्यों को बुलाने के लिए अधिकारीगण दौड़ने लगे। अनिष्ट की कल्पना कर सभी का कलेजा कांपने लगा।
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