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धूर्त की अमानत
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महाराज श्रेणिक ने अभयकुमार को न्याय करने के लिए आदेश दिया । अभयकुमार ने धूर्त को संकेत करते हुए कहा - " मैं जानता हूँ कि सेठ अमानत का बहुत बड़ा व्यापारी है । इसके पास हजारों प्रकार की वस्तुएं अमानत में आती हैं, कहीं वे इधर-उधर न हो जायें अतः सभी वस्तुओं पर मालिक के नाम की चिट्टियां लगाकर रखता है । पर तुम्हारी चिट्ठी गुम हो गई है, जिससे तुम्हारी कौन सी वस्तु है यह पहचानने में दिक्कत हो रही है ।"
धूर्त ने कहा - " मंत्रीवर ! इसमें दिक्कत की बात नहीं है, सत्य तो यह है कि सेठ की नियत ही बिगड़ गई है
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अभयकुमार - " सेठ के पास हजारों आँखें हैं उनमें से तुम्हारी कौन-सी है यह तो पहचाननी होगी ?"
धूर्त - "आप चाहें जो करें, मुझे तो अपनी आंख मिलनी चाहिए। बिना एक आँख के मेरा चेहरा कितना विकृत हो गया है, लोग मुझे एकाक्षी कहकर उपहास करते हैं ।"
अभयकुमार –"हाँ, तुम्हारा कथन पूर्ण सत्य है । मैं भी यही चाहता हूँ कि तुम्हें अपनी आँख मिलनी चाहिए, किन्तु उसके लिए तुम्हें एक कार्य करना होगा ।"
धूर्त - "हाँ तो शीघ्र बताइए वह कौन-सा कार्य है ?" अभयकुमार - "तुम्हारी जो यह दूसरी आँख है वह निकालकर सेठ को दे दो, जिससे वह तुम्हारी पुरानी
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