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फूल और पराग आँख पहचान लेगा और दोनों तुम्हें लौटा देगा।"
दूसरी आंख निकालने की बात सुनते ही धूर्त चौंक पड़ा, उसने कह - 'ऐसा नहीं हो सकता।"
अभयकुमार-''नहीं-नहीं कहने से कार्य नहीं होगा। मुझे पूर्ण न्याय करना है। बतलाओ तुम स्वयं हाथ से निकालकर देते हो या मैं जल्लादों को कहकर निकलवाऊँ ? तुम्हारे चेहरे से स्पष्ट ज्ञात होता है कि तुम नहीं निकालोगे। अभयकुमार ने उसी समय जल्लादों को बुलाया, वे तीक्ष्ण शस्त्र लेकर उपस्थित हो गये।
शस्त्र को देखते ही धूर्त का शरीर थर थर कांपने लगा। हृदय धड़कने लगा। वह अभयकुमार के चरणों में गिर पड़ा। “अब मुझे अमानत नहीं चाहिए । मैंने सेठ पर मिथ्या आरोप लगाया था। मुझे क्षमा करो।" उसकी आँखों से अश्र की धारा छूट गई। वह नेत्र-दान की भिक्षा मांगने लगा। __ अभयकुमार-"मेरे से क्या क्षमा मांग रहा है, जिस धर्मात्मा सेठ पर मिथ्या आरोप लगाकर इतना कष्ट दिया है, उनसे क्षमा मांग।"
धूर्त श्रेष्ठी के चरणों में गिर पड़ा। श्रेष्ठी ने कहा"अपराध की क्षमा तो सम्राट व महामात्य ही दे सकते हैं, मैं नहीं, क्योंकि वे ही न्याय के प्रदाता हैं।"
राजा श्रेणिक और अभयकुमार ने धूर्त के दुष्कृत्य को क्षमा कर दिया क्योंकि उसकी आँखों में प्रायश्चित्त के आंसू चमक रहे थे।
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