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फूल और पराग आँख की बात सुनकर सेठ के आश्चर्य का पार न रहा। उसने विस्मय-विमुग्ध स्वर में कहा- "क्या कभी आँख भी अमानत रखी जाती है ?"
धूर्त ने चट से कहा--"रखी जाती है इसीलिए तो मैंने रखी थी।" सेठ असमंजस में पड़ गये ! धूर्त जोर जोर से चिल्लाने लगा। लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई।
भाड़ में से एक वृद्ध अनुभवी सज्जन ने कहा-'बेचारे ने अमानत रखी है तो अवश्य ही लौटानी चाहिए।"
सेठ ने कहा--"कृपया आप ही हमारी समस्या सुलझा दीजिए।" - वृद्ध-"यह समस्या तो सम्राट् श्रेणिक, और महामात्य अभयकुमार ही सुलझा सकते हैं, आप उन्हीं के पास जाइए।"
सेठ एकाक्षो को लेकर सम्राट श्रोणिक की राजसभा में पहुंचा। सेठ ने अपना निवेदन प्रस्तुत किया और धर्त ने भी अपनी सफाई पेश की। दोनों ने सम्राट से न्याय की मांग की।
कुतुहलवश काफी लोग भी वहाँ एकत्रित हो गये। उनमें से कितने ही कह रहे थे-"बेचारे सेठ ने गरीब को धोखा दिया है। यह सच्चा है इसीलिए राजा के सामने निर्भीकता से बोल रहा है। कितने ही धूर्त को धिक्कारते हुए कह रहे थे- "अभी अभी इस दुष्ट को पता लगेगा कि सज्जन को सताने का क्या परिणाम होता है।"
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