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________________ फूल और पराग पिता मेरे निर्मल अभिप्राय को न समझ सका। वह हत्यारे के चरणों में गिर पड़ा, आँखों में आँसू बहाते हए उसने प्राणों की भिक्षा मांगी। राजकुमार की भोलीभाली मोहिनी सूरत से हत्यारे का कर दिल पसीज गया। उसके हाथ से तलवार नीचे गिर पड़ी। वह मनही-मन अपने को धिक्कारने लगा कि पैसे के कारण वह एक निर्दोष बालक की हत्या करना चाहता है, यह महान् अन्याय है। दूसरे ही क्षरण उसे विचार आया कि यदि मैंने राजकुमार को न मारा तो राजा मुझे मरवा देगा। उसने राजकुमार को कहा-'तुम दूसरे वस्त्र पहन लो, तुम्हारे वस्त्र मुझे दे दो। और ऐसे स्थान पर चले जाओ जहां पर तुम्हें कोई पहचानता न हो । यदि तुम नगर में चले आये, राजा को पता लग गया तो तुम्हारे साथ मुझे भी मरना पड़ेगा।" राजकुमार ने स्वीकृति दी कि आप निश्चित रहें, मैं पुनः नगर में नहीं आऊंगा। उसने अपने सभी वस्त्र हत्यारे को दे दिये । हत्यारे ने एक हिरण को मार कर खून से वस्त्रों को रंग दिये । राजा को खून सने वस्त्र दिखलाकर पांच हजार रुपए ले लिये। राजकुमार जंगलों में भटकता हुआ एक नगर में पहुँचा। कई दिनों से भूखा था। एक बूढ़ी माता ने उसके तेजस्वी चेहरे को देखा और उसे अपने पास रख लिया। उस नगर का राजा मर चुका था। राजा के कोई भी पुत्र नहीं था, अतः नवीन राजा बनाने के लिए योजना Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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