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________________ नमक से प्यारे ६५ घूमने के बहाने अमतसेन को जंगल में ले जाओ। उसे मार कर उसकी निशानी मुझे बताओ। मैं तुम्हें पुरस्कार के रूप में पाँच हजार रुपए दूंगा । हत्यारे की बाँछे खिल उठी। ___अपराह्न में हत्यारा सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर रथ में बैठ कर आया। राजकुमार अमृतसेन से कहा-"देखिए प्रकृति कितनी सुहावनी हो रही है। आकाश में उमड़-घुमड़ कर बादल आ रहे हैं, चलें जरा वन-विहार का आनन्द लूट कर आवें। राजकुमार भी शहरी वातारवण से तंग आचुका था। उसकी इच्छा भी प्राकृतिक सौन्दर्य सुषमा को निहारने की हो रही थी। वह उसके साथ रथ में बैठकर चल दिया। उसने सोचा यह तो हमारे नगर का कोई श्रेष्ठी है। रथ द्रुत गति से जंगल की ओर बढ़ रहा था। हत्यारा उसे वृक्ष लता फल और फूलों का परिचय देता जा रहा था। सरिता के सरस तट पर गहरी झाड़ी थी, रथ रुका ! हत्यारे ने चमचमाती तलवार को चमकाते हुए कहा-"राजकुमार ! नीचे उतरो ! जरा अपने इष्ट देव का स्मरण करो। राजा के आदेश से मैं तुम्हें मारने के लिए यहाँ लाया हूँ। हत्यारे की हुँकार सुनकर राजकुमार दिग्मूढ़ हो गया। पिता ने मुझे मरवाने के लिए यह षड्यंत्र रचा है। उसे स्मरण आया प्रात: मैंने नमक सा प्यारा कहा था यह उसी का प्रतिफल है। खेद है Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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