________________
१७
। नमक से प्यारे
राजा चन्द्रसेन ने प्रातः काल ही अपने तीनों पुत्रों को बुलाकर कहा- “बताओ में तुम्हारे को कैसा लगता हूं। तुम मुझे किस प्रकार चाहते हो।" पिता श्री का विचित्र प्रश्न सुन कर तीनों असमंजस में पड़ गये । एक क्षरण तो उन्हें समझ में ही नहीं आया कि क्या उत्तर देना चाहिए। कुछ विचार कर जिनसेन ने कहा"पिताजी ! आप तो मुझे होरे पन्ने माणक मोती जैसे बहुमूल्य रत्नों की तरह प्यारे लगते हैं।"
मणिसेन ने कहा-"आप मुझे मिठाइयों की तरह मधुर लगते हैं, फूलों की तरह प्यारे लगते हैं।"
अमृत सेन ने बताया-“वस्तुतः आप मुझे नमक की तरह सुहावने लगते हैं।" ___अमृत सेन की बात सुनते ही राजा को त्योंरियां चढ़ गई। मन ही मन में सोचा यह तो मुझे नमक के समान खारा मानता है। अच्छा तो मैं इस इसका फल बता दूंगा। तीनों पुत्रों को विदा किया। गुप्त व्यक्तियों के द्वारा उसने एक हत्यारे को बुलाकर कहा-"आज
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org