________________
नमक से प्यारे
चल रही थी। मन्त्रियों के परामर्श से यह निश्चित हआ कि नगर के सभी लोगों को आमंत्रित किया जाय
और एक तोता छोड़ा जाय, वह जिसके सिर पर बैठे उसे सर्वानुमति से राजा बना दिया जाय । बुढ़िया ने सुना, वह भी राजकुमार को लेकर राजसभा में गई । निश्चित समय पर तोता छोड़ा गया, देखते ही देखते तोता राजकुमार के सिर पर बैठ गया। मंत्रियों ने कहा"यह तो गरीब बुढ़िया का लड़का है अतः राजा नहीं बन सकता, दुबारा फिर तोता छोड़ा गया, इस बार भी वह राजकुमार के ही सिर पर बैठा । दुबारा भी विरोध होने पर तीसरी बार फिर से तोता छोड़ा गया । किन्तु तीसरी बार भो राजकुमार के सिर पर बैठने से सभी ने उसको राजा बना दिया। राजा अमृतसेन कुशलता से राज्य संचालन करने लगा।
एकदिन उसने अपने पिता राजा चन्द्रसेन को निमंत्रण दिया । राजा चन्द्रसेन वहाँ आया। भोजन की श्रेष्ठ तैयारियां की गई। राजा चन्द्रसेन ने अपने पुत्र को नहीं पहचाना। भोजन प्रारंभ हुआ, बढ़िया से बढ़िया मिठाइयां आयीं, सेव, पकोड़ियां और सब्जियां आयीं । राजा चन्द्रसेन ने भोजन चाल किया, पर किसी भी वस्तु में नमक न होने से भोजन का आनन्द नहीं आ रहा था । उसी समय अमृतसेन ने राजा चन्द्रसेन को पूछा-“राजन् । भोजन तो ठीक है न ?'
चन्द्रसेन--- "भोजन में और किसी बात की कमी नहीं
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org