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कलाकार की आलोचना
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कलाकार ने सगर्व कहा-मैं अपनी दस मूर्तियां बनाऊंगा, और जब यमराज आयेगा, तो मैं झठ से उन मर्तियों के बीच छिप जाऊँगा। वह यथार्थ और मर्ति का भेद नहीं कर सकेगा और मेरा बाल भी बांका नहीं होगा।
लोगों को विश्वास नहीं हआ परन्तु कलाकार को पूर्ण विश्वास था कि उसकी कला कभी भी निरर्थक नहीं हो सकेगी। वह मूर्ति-निर्माण में जुट गया। उसने दस मूर्तियाँ बनाई। और एक नूतन कक्ष में उन्हें स्थापित कर दी और स्वयं उसमें जा बैठा । दर्शक यह भेद नहीं कर सके कि मूर्तियां कौन है और कलाकार कौन है।
कलाकार अपनी बुद्धि-कौशल पर फूला नहीं समा रहा था। एक दिन वह मूर्तियों के बीच में बैठा हुआ था कि यमराज आ गया। कलाकार ने यमराज को पहचान लिया । कलाकार निस्तब्ध बैठा रहा लम्बे समय तक गहराई से देखने पर भी यमराज पहचान न सका कि कलाकार कौन है और मूर्ति कौन है। यमराज ने बुद्धिमता से काम लिया। उसने कहा-कैसा मूर्ख कलाकार है जो इन सभी मूर्तियों को भी एक सदृश नहीं बना सका। किसी की नाक सीधी है, किसी की टेढी है. किसी की मोटी है तो किसी की पतली है।
कलाकार ने ज्यों ही अपनी कटु आलोचना सुनी त्योंही वह वहीं बैठा चीख उठा कि मेरी कला को कौन
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