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अनमोल जीवन : कोड़ी का मोल
सका, उसने गुजारे के लिए लकड़ी को बेचने का निश्चय किया। लकड़ी का गट्ठा लेकर वह एक सेठ के यहाँ पहुँचा, सेठ बड़ा ही भला था, उसने वनवासी को कहा —यह लकड़ी साधारण नहीं बढ़िया चन्दन की है। उसने उसके बदले में काफी धन दिया। और कहा कि तम्हारे पास और भी इस प्रकार की लकड़ी हो तो वह लेते आना।
वनवासी अपनी ना समझी पर पश्चाताप करने लगा। उसने बहुमूल्य चन्दनवन को अत्यधिक कम कीमत में कोयला बनाकर बेच दिया था। एक समझदार व्यक्ति ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा-मित्र ! अब आँखों से
आँसू बहाकर पश्चाताप न करो सारा संसार ही तुम्हारी तरह ही है। जीवन के अनमोल क्षण चन्दन की लकड़ी के समान बहुमूल्य है पर विकार और वासना के कोयले बनाकर उसे बर्वाद कर रहे हैं । तुम्हारे पास एक वृक्ष बचा है उसका सद्उपयोग करो, तुम नौनिहाल हो जाओगे।
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