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अमिट रेखाए
उसके एक रूपवान कन्या भी थी युवक स्नान और भोजन से निवृत्त होकर बुढ़िया के पास बैठा। घर बीती और आप बीती अनेक बातें चलती रही, अन्त में वृद्धा ने युवक से पूछा --- तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य क्या है ! युवक ने कहा—मेरी कुछ व्यक्तिगत समस्यायें हैं, कुलदेवी के कहने से ने उनका समाधान करने के लिए ज्ञानो पूरुष के चरणों में जा रहा है।
वृद्धा के मुंह पर प्रसन्नता की रेखा चमक उठो, उसने कहा-पुत्र ! मेरी भी एक समस्या है, जिसमें मैं काफी उलझी हुई हूं, तुम मेरी समस्या का समाधान ज्ञानी पुरुष से करना-मेरी यह पुत्री है, जो विवाह योग्य हो गई है। जब मैंने इसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तब इसने मुझे अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा बताते हुए कहा --मैं उसी पुरुष के साथ विवाह करूंगी, जो सवा करोड़ की कीमत का बहमूल्य हीरा लाकर मुझे देगा। मैंने अनेक प्रकार से इसे समझाया पर यह अपनी हठ छोड़ती ही नहीं है, तो तू उस ज्ञानी से पूछना कि इसकी प्रतिज्ञा कब पूर्ण होगी।
युवक वृद्धा को आश्वासन देकर दूसरे दिन आगे बढ़ा। उस दिन भी वह एक योजन से अधिक न चल सका। विश्रान्ति के लिए उसने इधर-उधर देखा, पर आस-पास में कहीं भी गांव नहीं था, जंगल में एक झौंपड़ी थी, युवक उसी झौंपड़ी में पहुँचा, वहाँ एक सन्यासी जप तप कर रहा था, युवक ने रात्रि में वहाँ रहने की अनुमति माँगी। सन्यासी ने प्रसन्नता से कहा-आप
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