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________________ सुयोग्य पुत्र उसने सोचा कि पिता पुत्र में कर दूं जिससे कि मैं पति के ४६ इस प्रकार मन-मुटाव पैदा साथ आनन्दपूर्वक रह सकूं । वह जानबूझ कर श्वसुर के साथ ऐसा बर्ताव करने लगी कि जिससे वह परेशान हो गया । जब वह कुछ भी तो कहता वह लड़ने के लिए तैयार रहती । वसिठक के साथ इस प्रकार का बर्ताव करती कि वसिट्ठक को ज्ञात होने लगा कि यह निर्दोष है और पिता की ही गलती है । एक दिन वसिठक ने घर के झगड़े से ऊब कर कहा - प्रतिदिन का यह झगड़ा बहुत बुरा है, पिताजी ज्यों-ज्यों वृद्ध होते जा रहे हैं न जाने उनका व्यवहार ही कैसा होता जा रहा है । तुम्हीं बताओ अब मैं क्या करू । स्त्री ने नमक मिर्च लगाकर कहा- मुझे क्या पूछते हैं । जब से इस घर में आई है तब से एक दिन भी अच्छी तरह नहीं रही हूँ । अब तो ये इतने अधिक वृद्ध हो गये हैं, शरीर में भयंकर रोग भी पैदा हो गए हैं, जिससे वे यहाँ साक्षात् नरक का उपभोग कर रहे हैं । उनके कारण घर भी नरक हो गया है । जहाँ चाहते हैं वहाँ थूक देते हैं । श्रेष्ठ तो यही है कि इन्हें श्मशान में ले जाकर एक गड्डा बना कर गाड़ दो, जिससे वे कष्ट भोग रहे हैं वह भी मिट जायेगा और घर का भी उद्धार जायेगा | वसिठक को पत्नी की बात पसन्द आ गई । उसने कहा बात तो तुम्हारी ठीक है, पर पिता आसानी से Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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