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सुयोग्य पुत्र
वसिट्टक पिता का परम भक्त था। उसकी माँ बाल्यकाल में ही मर चुकी थी। पिता वृद्ध हो गये थे। वह रात दिन पिता की सेवा में लगा रहता, समय मिलने पर श्रम करके कुछ कमा लाता जिससे दोनों आनन्द से रहते।
एक दिन वृद्ध ने कहा-पुत्र । कमाने और संभालने का कार्य एक साथ नहीं हो सकता, अतः मैं बहूरानी लाना चाहता हूँ जिससे वह घर संभाल लेगी और तुम अच्छी तरह से कमा सकोगे।
पुत्र ने कहा-पिताजी ! आप चिन्ता न करें, मैं यह दोनों कार्य एक साथ कर लूगा । पर पिता न माना
और पुत्र का विवाह एक कन्या के साथ कर दिया। वह रूप में तो सुन्दर थी, पर स्वभाव उसका अच्छा नहीं था। वसिट्टक ने घर आते ही उससे कह दिया कि मेरे पिता की सेवा तुम्हें अच्छी तरह करनी है, उनको सेवा में कमी होने पर ठीक न रहेगा। कुछ दिनों तक
तो वह प्रेम से सेवा करती रही, पर कुछ दिनों के बाद Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org