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विजय का रहस्य
३६ राजा ने कहा- उसकी सेना में एक विचित्र ढंग का श्वेत बैल दिखलाई दे रहा है।
नन्दिसेन ने अपने विश्वस्त एक हजार सैनिकों को आगे कर कहा-राजन् । सर्व प्रथम आप उस बैल को मार दीजिए. उसी बैल के कारण कलिंगराज की विजय है, फिर शत्रुओं को परास्त कीजिएगा।
राजा अस्सकराज वीर सैनिकों के साथ शत्रु की सेना को परास्त करता हुआ उस दिव्य बैल के पास पहुँच गया, और उसे समाप्त कर दिया। दैवी बैल के समाप्त होते ही कलिंगराज की सेना मैदान छोड़कर भागने लगी। कलिंगराज का विजय स्वप्न मिथ्या हो गया। प्राण बचाकर भागते हुए कलिंगराज ने महात्मा को पुकारा कि अरे धूर्त । तेरी भविष्य वाणी को सत्य मानकर मैंने बड़ा धोखा खाया है तेरी बात पर विश्वास न कर यदि मन लगाकर युद्ध करता तो यह दुर्गति न होती। __ योगी को भी देव-वाणी मिथ्या होने से आश्चर्य हुआ। उसने पुनः रात में देव को आह्वान किया। देवने कहाभाग्य पुरुषार्थी व्यक्ति को ही सहायता करता है। उसने संयम, धैर्य और साहस के साथ पराक्रम दिखाया उसी से उसे सफलता मिली है। पुरुषार्थी देव-वाणी को भी मिथ्या कर सकता है।
(बौद्ध साहित्य में से)
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