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________________ अमिट रेखाएं थी ! फूलों की मधुर मधुर गंध मादकता पैदा कर रही थी। दोनों प्रमदवन में पहुँचे। आम्रवृक्ष के नीचे आराम कुर्सी पर बैठ गये । कोशा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसने अपनी कला का प्रदर्शन किया। उसने आम्र फल पर एक बाण छोड़ा। बाण फल पर जा लगा। उस बाण को दूसरे बाण से, दूसरे बाण को तीसरे बाण से, तीसरे बाण को चौथे बाण से, इस प्रकार इतने बाण बींध दिये कि अन्तिम बाण का अन्तिम छोर रथिक के हाथ में था। रथिक ने हलका-सा झटका देकर आम्र फल को शाखा से तोड़ दिया । रथिक ने कुशलता से एकएक बाण को निकाला, आम्र फल हाथ में आगया । उसने अत्यन्त स्नेह से आम का फल कोशा को समर्पित किया। वह विचारने लगा, मेरे कला कौशल से और स्नेह की अधिकता से कोशा पिघल जायेगी और अपने आपको समर्पित कर देगी, किन्तु उसकी इच्छा सफल न हो सकी । कोशा कला की प्रतिमूर्ति थी। उसने मुस्कराते हुए कहा-रथिक ! अब जरा मेरा भी कौशल देखलें। उसने उसी समय दासियों को आदेश देकर सरसों का ढेर करवाया। उस पर उसने सूई रखवाई। सूई की तीक्ष्ण नोक पर फल-पते सजाये, और उस पर नृत्य प्रारम्भ किया। नृत्य लम्बे समय तक चलता रहा, पर महान् आश्चर्य, न तो सूई उनके पैरों को बींध पाई और न सरसों के दाने ही अस्त-व्यस्त हुए। Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003195
Book TitleAmit Rekhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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