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सच्चा कलाकार
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रथिक की आँखें इस अद्भुत कौशल को देखकर चुंधिया गई । मेरी कला इस महान् कला के सामने पराजित है । मैं इस पर सब कुछ न्योच्छावर करता हूँ ।
कोशा ने कहा- रथिक ! तुम जिस कला को दुष्कर कह रहे हो और उस पर इतने अनुरक्त हो, वह तो कुछ भी नहीं है ! कठिन कला तो मुनि स्थूलभद्र की थी ।
रथिक ने जिज्ञासा प्रस्तुत की आप जिस स्थूलभद्र की इतनी अत्यधिक प्रशंसा कर रही हैं, वे कौन हैं और उन्होंने ऐसा कौन-सा कार्य किया ?
कोशा ने गौरव के साथ कहा- क्या आपको पता नहीं ? वे राजा नन्द के महामात्य शकडाल के पुत्र थे । वे मेरे पास बारह वर्ष तक रहे हैं । उनके साथ जीवन के वे मधुर क्षण बिताये हैं, किन्तु पिता के मरण से वे प्रबुद्ध हुए और जैनाचार्य संभूति विजय के पास उन्होंने आर्हती दीक्षा ग्रहण कर ली । दीक्षा लेने के पश्चात् भी वे यहां पर वर्षावास के लिए आये थे । एकान्त - शान्त वातावरण, वर्षाऋतु का सुहावना समय, बढिया रस से छलछलाता हुआ भोजन, सुन्दर चित्रशाला, मेरा प्रेम भरा नम्र निवेदन । इतना सब कुछ होने के बावजूद वे अपनी साधना से किञ्चित मात्र भी विचलित नहीं हुए । उनका ब्रह्मचर्य पूर्ण रूप से अखण्ड रहा ।
कोशा ने अपनी बात का स्पष्टीकरण करते हुए कहा - दूध को देखकर बिल्ली अपने मन को अधिकार में
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