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सच्चा कलाकार
राजा नन्द अपने रथिक के कमनीय कला कौशल को निहार कर मुग्ध हो गया ! उसने कहा रथिक । जो चाहे वह मांग सकते हो । रथिक कोशा के मनोहारी रूप पर पागल था, उसे ज्ञान था कि कोशा राजमान्य है वह बिना राजा की आज्ञा के किसी को आँख उठाकर भी नहीं देखती है । रथिक ने नन्द से निवेदन किया कि मैं एक बार कोशा से मिलना चाहता हूँ |
राजा नन्द ने उसकी बात सहर्ष स्वीकार कर ली । राजा ने कोशा के पास सन्देश भिजवा दिया । रथिक सजधज कर कोशा के आवास पर पहुँचा ! कोशा के सामने जटिल समस्या थी । वह स्वयं पवित्र जीवन जीना चाहती थी और इधर राजाज्ञा थी ।
कोशा ने रथिक के सामने आचार्य स्थूलभद्र के कठोर ब्रह्मचर्य व्रत की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । रथिक को वह बात पसन्द नहीं आई । उसने कहा चलो, प्रमदवन में वहाँ क्रीड़ा करेंगे। प्रमदवन (गृहोद्यान) में सघन हरियाली
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