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| शिष्यों की परीक्षा
सन्ध्या की लालिमा समाप्त हो गई थी। आचार्य विश्वकीर्ति अध्यापन से निवृत्त हो तृणसंस्तरण पर लेटे हुए विश्रान्ति की मुद्रा में थे। सहसा उनके तीन अन्तेवासी शिष्यों को वन्दन कर निवेदन किया-“गुरुदेव ! हमारी शिक्षा समाप्त हो गई है अब हम गृहस्थाश्रम में प्रवेश की अनुज्ञा चाहते हैं।
आचार्य ने शिष्यों की इच्छा देखकर आज्ञा प्रदान की। तीनों शिष्य सहर्ष अपने स्थान पर आकर प्रस्थान की तैयारी करने लगे। आचार्य ने उनके जाने के पश्चात् सोचा-मैंने अनुमती तो दे दी है, पर परीक्षा कर नहीं देखा कि इन तीनों में कौन जाने के योग्य है ? इन तीनों में से कौन मेरे नाम को, चार चाँद लगायेगा और कौन
नहीं।
ऊषा की सुनहरी किरण अभी निकली ही नहीं थी, आचार्य उठे और शौचादि निवृत्ति हेतु उसी दिशा में गये जिस दिशा में आज तीनों शिष्य गमन करने वाले थे। शिष्यों की परीक्षा के लिए कुछ कांच के टुकड़े मार्ग में Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org