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पावन व्रत
आचार्य प्रवर प्रवचन कर रहे थे। आत्मा को मांजने के सुन्दर साधन बतला रहे थे । आत्मा मलीन क्यों बनी ? वे उन कारणों पर प्रकाश डाल रहे थे । श्रोता झूम-झूम कर व्याख्यान श्रवण का आनन्द ले रहे थे ।
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प्रवचन समाप्त हुआ । जनता चली गई ! तब एक युवक आचार्य के पास आया । नमस्कार कर आचार्य श्री के चरणों में निवेदन किया - गुरुदेव ! आपने अभी अपने पीयूष वर्षी प्रवचन में फरमाया है कि 'आत्मा' चन्द्र के समान है । चन्द्र की चारु चन्द्रिका राहु से मुक्त होने पर ही छिटकती है । जब तक वह राहु के पाश में आबद्ध रहेगा तक तक चन्द्रमा का चमचमाता हुआ प्रकाश संसार को दृष्टिगोचर नहीं होगा । शुक्ल पक्ष में राहु का विमान प्रतिदिन हटता रहता है जिससे प्रतिपदा से द्वितीया और द्वितीया से तृतीया की किरणें बढ़ती रहती हैं । पूर्णिमा का चाँद पूर्णकला से युक्त होता है ।
आत्म चाँद पर भी कर्मों का राहु लगा हुआ है जिससे
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