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कला को देवता
१०१ पुरुष की नकल करते हुये तुझे लज्जा नहीं आती ? अन्तर चेतना जाग्रत हुई, आभूषण उतारते हुये आत्म-मंथन चला, आत्मज्योति जागृत हुई । दर्शकों ने धन के अम्बार लगा दिये ! पर वह उसमें उलझा नहीं । केवलज्ञान और केवलदर्शन और अपार आत्म-वैभव उसे प्राप्त हो गया था। वह अब निहाल था, दर्शक यह देखकर अवाक् थे।
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