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सुनें अधिक और बोलें कम
तथागत बुद्ध की आज्ञा की अवहेलना कौन कर सकता था । उन्होंने तथागत को नमस्कार किया और खिन्न मन से यशोज सहित संघाराम से बाहर निकल गये । वे कौशल प्रदेश से चलकर वज्जिय देश की यात्रा पूर्णकर वग्गमुदा सरिता के सन्निकट पर्णकुटी बनाकर रहने लगे । एक दिन यशोज ने अपने साथियों से कहा – तथागत बुद्ध ने हमारे पर असीम अनुकम्पा कर हमें दण्ड दिया है । हमारे कोलाहल से अप्रसन्न होकर उन्होंने हमारे को वहाँ से निकाला है अतः हमें अपनी भूल का परिष्कार करना होगा । पूर्ण अप्रमत्त होकर मौन की साधना करनी होगी। मौन की साधना से ही तथागत प्रसन्न हो सकते हैं। क्योंकि प्रकृति ने भी हमें दो कान, दो आँख, दो नाक के छिद्र दिये हैं किन्तु मुँह एक है । इसका अर्थ है सुनें अधिक और बोलें कम । प्रकृति ने कान खुले रखे हैं और मुँह बन्द रखा है । इसका अर्थ है सुनने पर रोक नहीं, पर बोलने पर रोक है । केवल काम होने पर ही बोलो ।
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