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गागर में सागर
आपसे आत्म-ज्ञान चाहता हूँ और आप दूसरी ही बात कर रहे हैं।
गुरु ने मुस्कराते हुए कहा-वत्स ! पानी मैं तुझे हवा की जितनी चाह थी, क्या आत्म-ज्ञान के लिए भी उतनी तड़फ है, यदि है तो तुझे कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। यह तड़फ ही तेरा मार्ग स्वतः बना देगी। आत्म-ज्ञान कहीं बाहर नहीं, अन्दर ही है।
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