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आत्म-ज्ञान
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आपका शिष्य हूँ, मेरी प्रार्थना की आप इतनी उपेक्षा क्यों करते हैं ?
गुरु ने कहा-अच्छा चलो, जरा हम नदी पर घूम आते हैं। कल-कल छल-छल करती हुई नदी बह रही थी, पानी काफी गहरा था । गुरु ने शिष्य को आदेश दिया कि जरा पानी में डुबकी लगाओ ! शिष्य ने उसी क्षण गुरु के आदेश का पालन किया। वह ज्योंही पानी की गहराई में पैठा, गुरु ने उसके सिर को जोर से दबा दिया। शिष्य गर्दन को पानी से बाहर निकालना चाहता था पर गुरु कुछ समय तक उसे रोकते रहे। पानी में हवा प्राप्त न होने से शिष्य का दम घुटने लगा और वह पानी से बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगा। जब गुरु ने देखा कि अब वह पानी में नहीं रह सकता तब उन्होंने अपने हाथ को कुछ ढोला छोड़ा और वह शीघ्र ही बाहर निकल आया । • सांस लेकर कुछ आश्वस्त हुआ।
गुरु के चेहरे पर पहले की भाँति ही मुस्कान अठखेलियाँ कर रही थी। उन्होंने शिष्य को प्रेम से सम्बोधित कर पूछा-जब तुम पानी में थे तब तुम्हारी सबसे तीव्र इच्छा क्या थी। शिष्य ने उत्तर दियाउस समय मैं सांस लेने के लिए हवा चाहता था । पर गुरुदेव आपने मेरे प्रश्न का तो उत्तर नहीं दिया। मैं
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