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गागर में सागर
दूसरी दीवाल दूसरे को दी गई । एक दूसरे को न देख ले इसलिए बीच में पर्दा लगा लिया गया।
दोनों ही कलाकार अपनी कमनीय कला को मूर्त रूप देने में संलग्न हो गये और कुछ ही दिनों में
पमा कार्य पूर्ण कर दिया । राजा उनकी कला को देखने के लिए अत्यधिक उत्सुक हो रहा था। कलाकारों की सूचना पाते ही राजा देखने के लिए चल दिया। उसने सर्वप्रथम चित्रकार की कृति को देखा। एक सजीव बोलते हुए चित्र को देखकर राजा अत्यधिक प्रसन्न हुआ और चित्रकार की सुक्तकंठ से प्रशंसा की।
राजा दूसरे कलाकार के पास पहेचा किन्तु उसने दीवाल पर कोई रंग नहीं लगाया था, कहीं पर तुलिका का प्रयोग भी नहीं किया था, केवल दीवाल स्फटिक की तरह चमक रही थी।
राजा ने विचित्रकार को पूछा-आपने अभी तक दीवाल पर कोई चित्र नहीं बनाया है?
" विचित्रकार ने कहा-राजन् ! यही तो मेरी अद्भुत कला है, बीच में जो यह पर्दा है आप उसे हटवा दीजिए, फिर देखिये मेरी कला का चमत्कार ।
पर्दा हटते ही सामने की दीवाल पर जो चित्र था, वह चित्र उसमें प्रतिबिम्बित हो उठा। चित्र
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