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________________ : १७: गुरु का गौरव - सिकन्दर सम्राट अपने गुरु अरस्तू के साथ घने जंगल में से होकर जा रहे थे। वे कुछ ही दूर पहुंचे कि एक उफनता हुआ बरसाती नाला रास्ते में आ गया। परस्पर गुरु-शिष्य में यह बहस छिड़ गई कि इस नाले को पहले कौन पार करे। सिकन्दर का आग्रह था कि वह नाले को पहले पार करेगा, जिससे गुरुदेव को बना बनाया मार्ग मिल जाये। अरस्तू को सिकन्दर की बात माननी पड़ी। पहले सिकन्दर ने नाला पार किया और उसके पश्चात् अरस्तू ने भी उसी रास्ते से नाले को पार किया। पार होने पर अरस्तू ने कहा-सिकन्दर ! आज तुमने मेरा भयंकर अपमान किया है। मेरे से आगे चलने में तुझे क्या मजा आया ? । सिकन्दर ने अपना सिर अरस्तू के चरणों में रखते हुए कहा-गुरुदेव ! मेरे अपराध को क्षमा करें। मेरे Jain Education Internationate Personal usev@njainelibrary.org
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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