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गुरु का गौरव
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कर्तव्य ने मुझे यह कार्य करने के लिए उत्प्रेरित किया । यदि अरस्तू संसार में रहेगा तो हजारों सिकन्दर तैयार हो सकते हैं किन्तु सिकन्दर के रहने पर एक भी अरस्तू तैयार नहीं हो सकता ।
अरस्तु सिकन्दर की बात सुनकर मदुग हो गया। उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- शाबाश सिकन्दर ! शाबाश ।
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